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India in Olympics
वर्तमान में भारत के लिए ओलंपिक में भागीदारी एक ऐसे खबर की तरह है जो शुरुआत में तो काफी उम्मीदें जगाता है लेकिन जब खेल का परिणाम निकलता है तो सबको निराशा हाथ लगती है. अगर हम ओलंपिक में भारत के इतिहास की चर्चा करें तो स्थिति आज से बेहतर थी.
आइए नजर डालते हैं कि ओलंपिक के इतिहास में कैसा है भारत का सफरनामा:
India in Olympics
अगर ओलंपिक खेलों के इतिहास के बारे में बात की जाए तो भारत की झोली में अब तक 20 पदक आए हैं जिसमें 11 पदक तो उसे हॉकी से ही मिले हैं. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है भारत जिसकी जनसंख्या एक अरब से भी ज्यादा है वह ओलंपिक में कहां स्थान रखता है.
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खेल के महाकुंभ ओलंपिक में भारत के इतिहास की शुरुआत होती है 1900 के पेरिस ओलंपिक से जहां कोलकाता के रहने वाले एक एंग्लो इंडियन नॉर्मन गिलबर्ट प्रिटिहार्ड ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था और 200 मीटर तथा 200 मीटर बाधा दौड़ में रजत पदक जीता था. उसके बाद 20 सालों तक भारत ने ओलंपिक में कोई योगदान नहीं दिया. वर्ष 1920 में बेल्जियम के एंटवर्प को ओलंपिक की मेजबानी का मौक़ा मिला. उस समय भारत ने पहली बार अपनी ओलंपिक टीम भेजी तब से लेकर आज तक भारत लगातार ओलंपिक में भाग लेता आ रहा है.
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भारत का पहला स्वर्ण पदक उस समय आया जब वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में जयपाल सिंह के नेतृत्व में भारतीय हॉकी टीम ने हॉलैंड को 3-0 से हराया. उसके बाद भारत ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगातार पांच बार ओलंपिक में(1932, 1936, 1948, 1952, 1956) में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीता. भारत ने इस बीच कई ऐसे रिकॉर्ड बनाए जिसे तोड़ना किसी भी देश के लिए आसान नहीं था. उसने 1932 में अमरीका को 24-1 के ज़बरदस्त अंतर से हराया. इस रिकॉर्ड को आज तक कोई भी टीम तोड़ नहीं पाई.
यह वही दौर था जब भारतीय हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का उद्भव हुआ. ध्यानचंद का उस समय ऐसा जादू चला कि लगातार भारत ने 28 सालों तक ओलंपिक में एकछत्र राज किया. भारत ने इस दौरान 24 मैच खेले, सभी 24 मैच जीते और विरोधी खेमे में 7.43 की औसत से 178 गोल दागे.
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1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारत ने पहली बार हॉकी के अलावा कुश्ती में भी पदक हासिल किया. केएल जाधव के जबर्दस्त प्रदर्शन से भारत ने कांस्य पदक जीता. 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय हॉकी की जीत का सिलसिला थम गया लेकिन इसी ओलंपिक में एक ऐसा पल आया जिसे अब तक याद किया जाता है. यहां मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में ऐतिहासिक लेकिन दिल तोड़ देने वाला प्रदर्शन किया और उन्होंने विश्व रिकॉर्ड तोड़ ज़रूर दिया लेकिन सिर्फ़ चौथा स्थान ही हासिल कर सके.
1964 के टोक्यो ओलंपिक में जहां भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान को 1-0 हराकर रोम ओलंपिक की हार का बदला ले लिया वहीं दूसरी ओर इसी ओलंपिक में गुरबचन सिंह रंधावा जिन्होंने 110 मीटर बाधा दौड़ में न सिर्फ 14 सेकेंड का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया बल्कि, विश्व स्तर के धावकों के बीच पांचवां स्थान प्राप्त किया.
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ओलंपिक में किसी भारतीय महिला को यदि याद किया जाएगा तो सबसे पहला स्थान पीटी ऊषा का आएगा. महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में जो प्रदर्शन पीटी ऊषा ने किया वह आज तक कई महिलाओं के गौरव की बात है. हालांकि इस दौड़ में वह कांस्य पदक से चूक गईं और चौथे स्थान पर रहीं. उसके बाद 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने अपने से वरीयता में कहीं ऊंचे खिलाड़ियों को हराकर पहली बार टेनिस की एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता. उस समय लिएंडर टेनिस में एक नए खिलाड़ी थे.
India in Olympics
2000 में सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने वह करके दिखाया जो पुरुष नहीं कर पाए. मल्लेश्वरी ने महिला भारोत्तोलन में भारत के लिए कांस्य पदक लेकर आईं. 2004 के एथेंस ओलंपिक में राज्यवर्धन राठौर ने डबल ट्रैप शूटिंग में रजत पदक क्या जीता कि वह देश के हीरो बन गए. इससे यह पता चलता है कि भारत के लोगों में पदकों को लेकर भूख है लेकिन कोई खिलाड़ी आज इस भूख को शांत नहीं कर पा रहा है.
वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कुछ खिलाडियों ने इस भूख को शांत करने की कोशिश की और भारत की झोली में अब तक सबसे ज्यादा तीन पदक लेकर आए लेकिन एक अरब से अधिक जंनसख्या वाले इस देश में इन तीन पदकों से क्या होने वाला. यह तो ऐसे लगता है जैसे ऊंट के मुंह में जीरा डाला जा रहा हो.
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